भारतीय नदी घाटियों में वर्षा के बेहतर पूर्वानुमान के लिए सांख्यिकीय पद्धतियां विकसित कर रहे वैज्ञानिक

नयी दिल्ली, भोपाल स्थित भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) के अनुसंधानकर्ता ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संगठनों के सहयोग से ऐसी सांख्यिकीय तकनीक विकसित कर रहे हैं, जो भारतीय नदी घाटियों में वर्षा संबंधी पूर्वानुमान को और सटीक बनाने में मदद करेगी। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।  अधिकारियों ने बताया कि अनुसंधानकर्ताओं का लक्ष्य वर्षा की उस अनियमित प्रकृति से उत्पन्न चुनौतियों को कम करना है, जो भारत की कृषि उत्पादकता और समग्र जीविका के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है।

             इस अनुसंधान के निष्कर्ष ‘हाइड्रोलॉजिकल साइंसेज’, ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिवर बेसिन मैनेजमेंट’ और ‘जर्नल ऑफ हाइड्रोलॉजी: रीजनल स्टडीज’ समेत विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।

             आईआईएसईआर भोपाल में सहायक प्रोफेसर संजीव कुमार झा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि भारत में विभिन्न स्थानों और विभिन्न समय पर बारिश की तीव्रता और दर में बहुत भिन्नता होती है और इसके अलावा बारिश कहीं बहुत ज्यादा, तो कहीं बहुत कम होती है।  उन्होंने कहा, ‘‘वर्षा का सटीक पूर्वानुमान एक ऐसे राष्ट्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो कृषि कार्यों और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने के लिए बारिश पर बहुत अधिक निर्भर है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जून से सितंबर तक अनियमित मानसून के महीनों के दौरान बाढ़ की समस्याओं से निपटने और जल संसाधनों के प्रबंधन में देश की मदद करने के लिए भी वर्षा संबंधी पूर्वानुमान महत्वपूर्ण हैं।’’

             अनुसंधानकर्ताओं ने नदियों में पानी के प्रवाह का पूर्वानुमान लगाने के लिए संख्यात्मक मौसम पूर्वानुमान मॉडल से प्राप्त मात्रात्मक वर्षा पूर्वानुमान (क्यूपीएफ) डेटा का उपयोग किया। उन्होंने उपग्रह और वर्षामापी डेटा सहित विभिन्न आंकड़ों का विश्लेषण करके गंगा, नर्मदा, महानदी, ताप्ती और गोदावरी जैसी प्रमुख नदी घाटियों में पूर्वानुमान सटीकता का आकलन किया। अनुसंधानकर्ताओं के दल में झा के अलावा निबेदिता सामल, अंकित सिंह, आर अश्विन और अक्षय सिंघल भी शामिल थे। इसके अलावा मेलबर्न विश्वविद्यालय के क्विचुन यांग एवं प्रोफेसर क्यू जे वांग और ऑस्ट्रेलिया स्थित ‘कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च आर्गेनाइजेशन’ के डॉ डेविड रॉबर्टसन ने भी इस अनुसंधान में योगदान दिया।

            झा ने बताया कि अनुसंधानकर्ताओं ने भारत की मानसून-प्रधान जलवायु के संदर्भ में प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिए ‘बायेसियन ज्वाइंट प्रोबेबिलिटी’(बीजेपी) नामक एक सांख्यिकीय तरीके का उपयोग किया, जिसका मूल रूप से ऑस्ट्रेलिया में इस्तेमाल किया जाता था। उन्होंने बताया कि अध्ययन से इस बात का संकेत मिला कि यह तरीका पूर्वानुमान को उल्लेखनीय रूप से सटीक बनाता है। झा ने जोर देकर कहा कि इस अनुसंधान में वर्षा संबंधी जटिलताओं का अनुमान लगाने और उनका समाधान निकालने की भारत की क्षमता में क्रांतिकारी बदलाव लाने की अपार संभावनाएं हैं।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

%d bloggers like this: