मलेरिया उन्मूलन के लिए नये समाधान ढूंढने की जरूरत

मेलबर्न, हर मिनट 400 से ज्यादा लोगों को मलेरिया होता है और करीबन हर एक मिनट में एक व्यक्ति की इस रोग से मौत होती है।इस रोग से जान गंवाने वाले लोगों में उप-सहारा अफ्रीका के पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या सबसे अधिक होने की आशंका है।मलेरिया से होने वाली मौतों में करीब 70 फीसदी अफ्रीका में रहने वाले बच्चों की संख्या है, हालांकि एशिया-प्रशांत और अमेरिका के कुछ हिस्सों में भी इस बीमारी का प्रकोप है।मलेरिया के दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी के लिए खतरा बने होने और इसके उन्मूलन के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए जाने के बावजूद इस रोग के वैश्विक बोझ को कम करने में प्रगति 2015 के बाद से लगभग रुकी हुई है।

            वर्ष 2020 में मलेरिया के संकट में चिंताजनक वृद्धि हुई, जिसका एक कारण आंशिक रूप से कोविड-19 महामारी का प्रभाव भी शामिल है। 2023 विश्व मलेरिया रिपोर्ट के अनुमान के मुताबिक, 2022 में मलेरिया के 24.9 करोड़ मामले सामने आये थे।मलेरिया की बेहतर रोकथाम, उपचार, निदान और निगरानी के माध्यम से इस रोग के उन्मूलन की दिशा में प्रगति में तेजी लाने के लिए नयी रणनीतियों और उपकरणों की आवश्यकता है। मलेरिया एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं बल्कि प्लाज्मोडियम परजीवी (पी. फाल्सीपेरम या पी. विवैक्स) से संक्रमित एनाफिलीज मच्छर के काटने से फैलता है। मलेरिया उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल करने में मौजूद विशिष्ट चुनौतियों में से यह एक है, क्योंकि यह कई अन्य संक्रमणों से भिन्न है।

            विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हाल ही में पहली मलेरिया वैक्सीन (आरटीएस, एस/एएस01 और आर21/मैट्रिक्स-एम) को व्यापक रूप से इस्तेमाल करने की सिफारिश की है, जो मलेरिया की रोकथाम में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है।

            हालांकि, चुनौतियां अब भी बरकरार हैं। टीकों को वर्तमान में केवल छोटे बच्चों पर इस्तेमाल करने की मंजूरी प्रदान की गयी है और इन टीकों से मिलने वाली सुरक्षा की अवधि अपेक्षाकृत कम होती है, जिसका मतलब यह है कि 12 से 18 महीनों के बाद आपको बूस्टर डोज लेने की आवश्यकता होती है।इसके साथ ही इन टीकों की प्रभावकारिता मलेरिया परजीवियों की आनुवंशिक विविधता से भी प्रभावित होती है इसलिए टीका कुछ मामलों को छोड़कर मलेरिया को रोकने में प्रभावी नहीं है। ये टीके केवल पी. फाल्सीपेरम मामलों में ही प्रभावी हैं, जो अफ्रीका में बड़े पैमाने पर मलेरिया का कारण बनता है। ये टीके पी. वाइवैक्स मलेरिया के मामलों में प्रभावी नहीं हैं, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र और अफ्रीका व अमेरिका के कुछ हिस्सों में व्यापक रूप से सामने आते हैं।

            प्लाज्मोडियम परजीवियों विशेष रूप से पी. फाल्सीपेरम मामलों का व्यापक रूप से सामने आना मलेरिया रुग्णता और मृत्यु दर में वृद्धि के जोखिम को दर्शाता है। पी. फाल्सीपेरम, मलेरिया-रोधी दवाओं के प्रति प्रतिरोधी है, इसलिए दुनियाभर में इसके मामलों में वृद्धि हो रही है। इसके अलावा पी. वाइवैक्स एक यकृत (लिवर) संक्रमण का कारण बनता है, जो प्रारंभिक संक्रमण के हफ्तों या वर्षों बाद फिर से सक्रिय हो सकता है, जिससे मलेरिया दोबारा हो सकता है।  इन छिपे हुए संक्रमणों का निदान और उपचार करना अभी भी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है, जो मलेरिया नियंत्रण और उन्मूलन कार्यक्रमों की प्रगति में एक और बाधा है।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

%d bloggers like this: