राष्ट्रपति चुनाव की कानूनी योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार से न्यायालय का इनकार

नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को राष्ट्रपति पद के चुनाव संबंधी एक कानूनी योजना की वैधता को चुनौती देने वाली दो अलग-अलग याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया। इस कानूनी योजना के अनुसार राष्ट्रपति चुनाव के किसी उम्मीदवार को प्रस्तावक के रूप में कम से कम 50 सांसदों या विधायकों और 50 अनुमोदकों का समर्थन होना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह के मामले चुनाव के समय दाखिल करना स्वस्थ परंपरा नहीं है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जे बी परदीवाला की अवकाशकालीन पीठ दिल्ली निवासी बम बम महाराज नौहट्टिया और आंध्र प्रदेश के प्रकासम जिले के रहने वाले डॉ एम तिरुपति रेड्डी की अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952 की धारा 5 बी (1) (ए) किसी भी व्यक्ति को प्रस्तावकों के रूप में 50 और अनुमोदकों के रूप में 50 जन प्रतिनिधियों का समर्थन हासिल नहीं होने पर राष्ट्रपति चुनाव लड़ने से रोकती है।

साल 2007 से राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का प्रयास कर रहे लेकिन लड़ नहीं पा रहे नौहट्टिया की याचिका का निस्तारण करते हुए पीठ ने उन्हें ‘मौसमी कार्यकर्ता’ करार दिया जो हर पांच साल में शीर्ष पद पर चुनाव लड़ने के लिए जागते हैं।

पीठ ने नौहट्टिया के वकील से याचिका वापस लेने को कहा। पीठ ने कहा कि वह इस कानूनी पहलू पर किसी उचित समय पर विचार कर सकती है जब कोई मुद्दा लंबित नहीं हो।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

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