रेलवे बोर्ड के विभिन्न जोन में कार्यरत कर्मचारियों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए: शीर्ष अदालत

नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि रेलवे बोर्ड के तहत अलग-अलग जोन या मंडल में काम करने वाले कर्मचारियों के साथ समान व्यवहार किया जाना जरूरी है और इसमें कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।

शीर्ष अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के नवंबर 2019 के फैसले के खिलाफ उत्तर रेलवे और अन्य के माध्यम से केंद्र द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया। उक्त फैसले में उच्च न्यायालय ने उसे (केंद्र को) निर्देश दिया था कि ‘कमीशन वेंडर’ द्वारा उनके नियमितीकरण से पहले प्रदान की गई 50 प्रतिशत सेवा की गणना पेंशन लाभ प्रदान करने के लिए ‘अर्हक सेवा’ के तौर पर की जाए।

शीर्ष अदालत ने कहा कि जहां तक ​​पश्चिम, पूर्व, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व रेलवे में काम करने वाले ‘कमीशन वेंडर’ का संबंध है, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) और उच्च न्यायालयों द्वारा पारित विभिन्न आदेशों के तहत, जिनकी पुष्टि उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई है, मुददा रेलवे के खिलाफ है।

न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने अपने 36-पृष्ठ के फैसले में कहा, ‘‘इस पर विवाद नहीं हो सकता कि रेलवे में विभिन्न मंडल/जोन में काम करने वाले कर्मचारी एक ही नियोक्ता रेलवे बोर्ड के तहत हैं जो रेल मंत्रालय के अधीन है। रेलवे में 16 जोन और 68 मंडल हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, एक ही नियोक्ता – रेलवे बोर्ड – के तहत विभिन्न जोन/ मंडल में काम करने वाले कर्मचारियों के साथ एकसमान और समान रूप से व्यवहार करने की आवश्यकता है और वे समान लाभों के हकदार होते हैं। जैसा कि प्रतिवादियों द्वारा सही कहा गया है कि कोई भेदभाव नहीं हो सकता।’’

उसने कहा कि समानता के आधार पर, उत्तर रेलवे में काम करने वाले ‘कमीशन वेंडर’ विभिन्न जोन या डिवीजन के तहत काम करने वाले ‘कमीशन वेंडर’ जैसे समान लाभों के हकदार हैं।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘समान रूप से स्थित कर्मचारियों के संबंध में अलग-अलग मानदंड नहीं हो सकते हैं – अलग-अलग जोन / डिवीजन, लेकिन एक ही नियोक्ता के तहत काम करने वाले कमीशन वेंडर / पदाधिकारी।’’

इसने कहा कि समान लाभों से इनकार करना भेदभाव के समान होगा और संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन होगा।

उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी थी कि उत्तर रेलवे में ‘कमीशन वेंडर’ या अधिकारियों द्वारा उनके नियमितीकरण से पहले प्रदान की गई सेवाओं की गणना पेंशन लाभ के प्रयोजनों के लिए की जानी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पश्चिम, पूर्व, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व रेलवे में काम करने वाले ‘कमीशन वेंडर’ या अधिकारियों के संबंध में, उन्हें उनके नियमितीकरण से पहले प्रदान की गई सेवाओं के 50 प्रतिशत की गणना पेंशन लाभ के लिए की जानी चाहिए।

इसने कहा कि समान रूप से स्थित ‘कमीशन वेंडर’ के बीच भेदभाव नहीं किया जा सकता।

केंद्र की ओर से इस दलील पर विचार करते हुए कि रेलवे पर भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा, पीठ ने कहा कि मामला पेंशन संबंधी लाभों से संबंधित है।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

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