रोहिंग्या नरसंहार मामले को संयुक्त राष्ट्र की अदालत में खारिज किया जाना चाहिए: म्यांमा

द हेग, म्यांमा के सैन्य शासकों के वकीलों ने सोमवार को मांग की कि रोहिंग्या नरसंहार मामले को संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत में अधिकार क्षेत्र का हवाला देते हुए खारिज कर दिया जाना चाहिए।

पिछले साल देश की सत्ता पर सेना के कब्जे के बाद म्यांमा का प्रतिनिधित्व करने के बारे में सवालों के बीच अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में सार्वजनिक सुनवाई चल रही है।

‘नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट’ नामक एक प्रतीकात्मक प्रशासन ने तर्क दिया था कि उसे अदालत में म्यांमा की ओर से प्रतिनिधित्व करना चाहिए, लेकिन इसके बजाय कानूनी टीम का नेतृत्व अंतरराष्ट्रीय सहयोग मंत्री को को लाइंग ने किया था। इस ‘गवर्नमेंट’ में अन्य प्रतिनिधियों के अलावा वे निर्वाचित प्रतिनिधि भी शामिल थे, जिन्हें सैन्य शासकों ने सीट संभालने नहीं दिया था।

उन्होंने लोकतंत्र समर्थक नेता आंग सान सू ची की जगह ली थी, जिन्होंने 2019 में मामले में पहले की सुनवाई में देश की कानूनी टीम का नेतृत्व किया था। वह अब जेल में हैं।

सुनवाई शुरू होने पर अदालत के अध्यक्ष, अमेरिकी न्यायाधीश जोआन डोनोग्यू ने कहा, ‘‘अदालत के समक्ष एक विवादास्पद मामले के पक्षकार देश (स्टेट) हैं, विशेष सरकारें नहीं है।’’

म्यांमा के एक अधिकार समूह ने सैन्य शासन को म्यांमा का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति देने के अदालत के फैसले पर सवाल उठाया।

‘बर्मा ह्यूमन राइट्स नेटवर्क’ के कार्यकारी निदेशक क्याव विन ने एक बयान में कहा, ‘‘हमें खुशी है कि मामला आगे बढ़ रहा है लेकिन यह बहुत दुखी करने वाला है कि सेना को म्यांमा के प्रतिनिधि के रूप में अदालत के सामने पेश होने की अनुमति है।’’

लाइंग ने अदालत से कहा कि म्यांमा के पास अदालत के अधिकार क्षेत्र और मामले की स्वीकार्यता के लिए कानूनी चुनौतियां हैं। इनमें से एक तर्क यह है कि यह मामला ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामलिक स्टेट्स की ओर से गाम्बिया द्वारा लाया गया है।

वकील क्रिस्टोफर स्टेकर ने दलील दी कि यह अदालत केवल देशों के बीच उत्पन्न विवादों को सुन सकती है और गाम्बिया मुस्लिम संगठन के लिए छद्म पक्षकार के रूप में कार्य कर रहा है।

एक अन्य वकील स्टेफन टालमोन ने कहा कि गाम्बिया यह मामला नहीं ला सकता क्योंकि वह म्यांमा के मामले से सीधे जुड़ा नहीं है। टालमोन ने न्यायाधीशों से कहा, ‘‘म्यामां की दलील है कि गाम्बिया का मौजूदा मामले में कोई अस्तित्व नहीं है। तदनुसार, इसकी याचिका सुनवाई योग्य न मानते हुए खारिज की जानी चाहिए।’’

गाम्बिया के वकीलों की ओर बुधवार को दलीलें पेश करने की संभावना है।

म्यांमा के छद्म नागरिक प्रशासन ने रोहिंग्या नरसंहार मामले में संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत में होने वाली सुनवाई के दौरान सैन्य शासन जुंटा के प्रतिनिधियों को देश का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति नहीं देने का आह्वान किया था।

‘नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट’ का कहना है कि यह देश की एकमात्र वैध सरकार है लेकिन किसी विदेशी सरकार ने इसे मान्यता नहीं दी है।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

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