अदालत ने पैरोल आवेदन पर फैसला लेने में देरी को लेकर जेल अधीक्षक, जिलाधिकारी को फटकार लगाई

जोधपुर, राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक कैदी के आकस्मिक पैरोल आवेदन को एक महीने से अधिक समय तक लटकाए रखने के लिये जेल अधीक्षक और बीकानेर के जिलाधिकारी को तलब किया है।

न्यायमूर्ति रामेश्वर व्यास और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ ने अधिकारियों से पूछा है कि उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए।

कैदी गिरधारी सिंह ने अपनी याचिका में कहा कि उसकी मां का इस साल नौ मार्च को निधन हो गया था और उसने अगले दिन जेल अधीक्षक के समक्ष 15 दिन की अंतरिम पैरोल के लिए आवेदन किया था।

सिंह की वकील रंजना सिंह मेरटिया ने कहा कि इसे आकस्मिक पैरोल मानते हुए, आवेदन को जिलाधिकारी (जिला मजिस्ट्रेट) के पास भेजा गया, जिन्होंने इसे उचित आदेश पारित करने के लिए अधीक्षक के पास वापस भेज दिया।

उन्होंने कहा, ‘इसके लगभग एक महीने के बाद सिंह ने उच्च न्यायालय का रुख किया।’

अदालत ने कैदी को तत्काल 15 दिन की पैरोल प्रदान कर दी।

अदालत ने कहा कि उसने जेल अधिकारियों को समय-समय पर आकस्मिक पैरोल आवेदनों पर जल्द निर्णय लेने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि आवेदन के सात दिन के भीतर उन्हें मंजूरी दी जाये।

अदालत ने 18 अप्रैल को अगली सुनवाई पर दोनों अधिकारियों को पेश होने के लिये कहा है।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikipedia Commons

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