अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन ‘समावेशी नहीं हुआ, मान्यता पर सोच-समझकर फैसला किया जाए: मोदी

नयी दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन ‘‘समावेशी’’ नहीं हुआ है, लिहाजा नयी व्यवस्था की स्वीकार्यता पर सवाल उठते हैं और इस परिस्थिति में उसे मान्यता देने के बारे में वैश्विक समुदाय को ‘‘सामूहिक’’ और ‘‘सोच-विचार’’ कर फैसला करना चाहिए।

प्रधानमंत्री ने साथ ही चेताया भी कि अगर अफगानिस्तान में ‘‘अस्थिरता और कट्टरवाद’’ बना रहेगा तो इससे पूरे विश्व में आतंकवादी और अतिवादी विचारधाराओं को बढ़ावा मिलेगा।

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत का रुख स्पष्ट करते हुए अपने डिजिटल संबोधन में कहा कि वहां की भूमि का इस्तेमाल किसी भी देश में आतंकवाद फैलाने के लिए नहीं होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के हाल के घटनाक्रम का सर्वाधिक प्रभाव भारत जैसे उसके पड़ोसी देशों पर होगा और साथ ही उन्होंने सीमापार आतंकवाद तथा आतंकवाद के वित्त पोषण पर लगाम कसने के लिए आचार संहिता बनाने की वकालत की।

इससे पहले, राष्ट्राध्यक्षों की परिषद के 21वें शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने कट्टरता और अतिवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए शुक्रवार को एससीओ से एक साझा खाका विकसित करने का आह्वान किया और शांति, सुरक्षा व विश्वास की कमी को इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती करार देते हुए कहा कि इन समस्याओं के मूल में कट्टरपंथी विचारधारा ही है।

मोदी ने इस कड़ी में अफगानिस्तान के हाल के घटनाक्रमों का उल्लेख किया और कहा कि संगठन के सदस्य देशों को ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए साथ मिलकर काम करना चाहिए।

उन्होंने अपने संबोधन में बंदरगाह विहीन मध्य एशिया के देशों और भारत के बीच संपर्क बेहतर बनाने का आह्वान किया लेकिन साथ ही कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए संपर्क परियोजनाएं परामर्शी, पारदर्शी और सहभागी हों और उनके क्रियान्वयन में सभी देशों की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान होना चाहिए।

ज्ञात हो कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के कुछ ही दिनों के भीतर तालिबान ने युद्ध से जर्जर देश पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया है।

बिना तालिबान का नाम लिए प्रधानमंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के हाल के घटनाक्रमों से मुख्य रूप से चार प्रकार की चिंताएं सामने आई हैं, जिनके बारे में विश्व समुदाय को सोचना होगा।

उन्होंने कहा कि पहला मुद्दा अफगानिस्तान में सत्ता-परिवर्तन का है, जो ‘‘समावेशी’’ नहीं है और बिना वार्ता के हुआ है।

उन्होंने कहा, ‘‘इससे नई व्यवस्था की स्वीकार्यता पर सवाल उठते हैं। महिलाओं और अल्पसंख्यकों सहित अफगान समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व भी महत्वपूर्ण है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए आवश्यक है कि नयी व्यवस्था को मान्यता देने पर वैश्विक समुदाय सोच समझ कर और सामूहिक रूप से फैसला ले।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि पड़ोसी देश के ताजा घटनाक्रमों को देखते हुए इस मामले में क्षेत्रीय फोकस और सहयोग आवश्यक है। उन्होंने कहा, ‘‘अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रम का सबसे अधिक प्रभाव हम जैसे पड़ोसी देशों पर होगा। और इसलिए इस मुद्दे पर क्षेत्रीय फोकस और सहयोग आवश्यक है।’’

प्रधानमंत्री मोदी ने चेताया कि अगर अफगानिस्तान में ‘‘अस्थिरता और कट्टरवाद’’ बना रहेगा तो इससे पूरे विश्व में आतंकवादी और अतिवादी विचारधाराओं को बढ़ावा मिलेगा।

उन्होंने कहा, ‘‘अन्य उग्रवादी समूहों को हिंसा के माध्यम से सत्ता पाने का प्रोत्साहन भी मिल सकता है। इससे ड्रग्स, अवैध हथियारों और मानव तस्करी का अनियंत्रित प्रवाह बढ़ सकता है। बड़ी मात्रा में आधुनिक हथियार अफगानिस्तान में रह गए हैं और इनके कारण पूरे क्षेत्र में अस्थिरता का खतरा बना रहेगा।’’

मोदी ने कहा कि एसएसीओ के सदस्य देशों को इस विषय पर एक सख्त और सभी के लिए नियम/कायदे बनाने चाहिए और वह आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक सहयोग का हिस्सा भी बन सकते हैं।

उन्होंने कहा कि यह नियम आतंकवाद को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करने के सिद्धांत पर बन सकते हैं।

साथ ही उन्होंने रेखांकित किया कि सीमापार आतंकवाद और आतंकवाद के वित्त पोषण को रोकने के लिए भी आचार संहिता होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘उन्हें लागू करने के लिए एक तंत्र भी होना चाहिए।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान में गंभीर मानवीय संकट है और वित्तीय प्रवाह में रुकावट के कारण वहां की जनता की आर्थिक विवशता बढ़ती जा रही है तथा साथ ही कोरोना की चुनौती भी उनके लिए यातना का कारण है।

उन्होंने कहा, ‘‘विकास और मानवीय सहायता के लिए भारत वर्षों से अफगानिस्तान का विश्वस्त सहयोगी रहा है। बुनियादी ढांचे से ले कर शिक्षा, सेहत और क्षमता निर्माण तक हर क्षेत्र में और अफगानिस्तान के हर भाग में हमने अपना योगदान दिया है।’’ उन्होंने कहा कि आज भी ‘‘हम अपने अफगान मित्रों’’ तक खाद्य सामग्री, दवाइयां आदि पहुंचाने के लिए इच्छुक हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी को मिल कर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अफगानिस्तान तक मानवीय सहायता निर्बाध तरीके से पहुंच सके।’’

एससीओ की 20वीं वर्षगांठ पर मोदी ने सबसे पहले ईरान का एससीओ के नए सदस्य देश के रूप में स्वागत किया। साथ ही उन्होंने तीन नए देशों साऊदी अरब, मिस्र और कतर का भी स्वागत किया।

अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती शांति, सुरक्षा और विश्वास की कमी से संबंधित है और इन समस्याओं का मूल कारण बढ़ता हुआ कट्टरवाद है।

उन्होंने कहा, ‘‘एससीओ की 20वीं वर्षगांठ इस संस्था के भविष्य के बारे में सोचने के लिए भी उपयुक्त अवसर है। मेरा मानना है कि इस क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती शांति, सुरक्षा और विश्वास की कमी से संबंधित हैं और इन समस्याओं का मूल कारण बढ़ती हुई कट्टरता है। अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रम ने इस चुनौती को और स्पष्ट कर दिया है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इस मुद्दे पर एससीओ को पहल करके कार्य करना चाहिए।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि यदि इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो यह पता चलेगा कि मध्य एशिया का क्षेत्र शांत और प्रगतिशील संस्कृति तथा मूल्यों का गढ़ रहा है और सूफीवाद जैसी परम्पराएं यहां सदियों से पनपीं और पूरे क्षेत्र और विश्व में फैलीं।

उन्होंने कहा कि इनकी छवि हम आज भी इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत में देख सकते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘मध्य एशिया की इस ऐतिहासिक धरोहर के आधार पर एससीओ को कट्टरता और अतिवाद से लड़ने का एक साझा खाका विकसित करना चाहिए। भारत में और एससीओ के लगभग सभी देशों में इस्लाम से जुड़ी शांत, सहिष्णु समावेशी संस्थाएं व परम्पराएं हैं। एससीओ को इनके बीच एक मजबूत नेटवर्क विकसित करने के लिए काम करना चाहिए।’’

मोदी ने कहा कि कट्टरता और असुरक्षा के कारण इस क्षेत्र की विशाल आर्थिक क्षमता का भी दोहन नहीं हो सका। उन्होंने कहा कि खनिज संपदा हो या एससीओ देशों के बीच व्यापार, इनका पूर्ण लाभ उठाने के लिए आपसी संपर्क पर जोर देना होगा।

उन्होंने कहा कि ईरान के चाबहार बंदरगाह में भारत का निवेश और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण गलियारे में उसके प्रयास इसका समर्थन करते हैं।

एससीओ परिषद के सदस्य देशों के प्रमुखों की 21वीं बैठक शुक्रवार को हाइब्रिड प्रारूप में दुशांबे में आरंभ हुई। इसकी अध्यक्षता ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमान कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर एससीओ की बैठक में हिस्सा लेने के लिये दुशांबे में हैं।

इस बीच, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के नेताओं ने एक संयुक्त घोषणा में कहा कि अफगानिस्तान को आतंकवाद, युद्ध और मादक पदार्थों से मुक्त स्वतंत्र, लोकतांत्रिक एवं शांतिपूर्ण देश बनना चाहिए तथा युद्धग्रस्त देश में एक ‘‘समावेशी’’ सरकार का होना महत्वपूर्ण है जिसमें सभी जातीय, धार्मिक एवं राजनीतिक समूहों के प्रतिनिधि शामिल हों।

एससीओ के सदस्य देशों के नेताओं ने सभी तरह के आतंकवाद की भी कड़ी निंदा की।

एससीओ नेताओं ने उल्लेख किया कि एससीओ क्षेत्र में सुरक्षा एवं स्थिरता का संरक्षण एवं मजबूती के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारकों में से एक यह है कि अफगानिस्तान में स्थिति का जल्द समाधान हो। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान ‘‘एक स्वतंत्र, तटस्थ, एकीकृत, लोकातांत्रिक एवं शांतिपूर्ण देश के रूप में उभरना चाहिए जो आतंकवाद, युद्ध और मादक पदार्थों से मुक्त हो।’’

पहली बार एससीओ की शिखर बैठक हाइब्रिड प्रारूप में आयोजित की जा रही है और यह चौथी शिखर बैठक है जिसमें भारत एससीओ के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में हिस्सा ले रहा है। हाईब्रिड प्रारूप के तहत आयोजन के कुछ हिस्से को डिजिटल आधार पर और शेष हिस्से को आमंत्रित सदस्यों की प्रत्यक्ष उपस्थिति के माध्यम से संपन्न किया जाता है।

एससीओ को शांति, सुरक्षा, व्यापार, अर्थव्यवस्था और संस्कृति के क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन माना जाता है।

इस बैठक का महत्व इसलिये भी बढ़ जाता है क्योंकि संगठन इस वर्ष अपनी स्थापना की 20वीं वर्षगांठ मना रहा है।

उल्लेखनीय है कि एससीओ की स्थापना 15 जून 2001 को हुई थी और भारत और पाकिस्तान 2017 में इसके पूर्णकालिक सदस्य बने। एससीओ में भारत और पाकिस्तान के अलावा रूस, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान तथा उजबेकिस्तान शामिल हैं।

क्रेडिट : पेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

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