कोयले को मेथनॉल में बदलने के लिए स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित

नयी दिल्ली, भारत ने अधिक राख वाले भारतीय कोयले को मेथनॉल में बदलने के लिए एक स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित की है और इसके लिए हैदराबाद में अपना पहला प्रायोगिक संयंत्र स्थापित किया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।

डीएसटी ने एक बयान में कहा कि यह देश को स्वच्छ प्रौद्योगिकी को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करेगी और परिवहन ईंधन (पेट्रोल के साथ मिश्रण) के रूप में मेथनॉल के उपयोग को बढ़ावा देगी। इस तरह यह कच्चे तेल के आयात को कम करेगी।

कोयले को मेथनॉल में बदलने की प्रक्रिया में कोयले का संश्लेषण (सिनगैस) गैस, सिनगैस की सफाई और उसका अनुकूलन (कंडीशनिंग), सिनगैस से मेथनॉल में रूपांतरण तथा मेथनॉल का शुद्धिकरण शामिल हैं। ज्यादातर देशों में कोयले से मेथनॉल बनाने वाले संयंत्र कम राख वाले कोयले से संचालित होते हैं। अधिक राख की मात्रा को पिघलाने के लिए आवश्यक अधिक राख और ऊष्मा का प्रबन्धन करना भारतीय कोयले के मामले में एक ऐसी चुनौती है, जिसमें आमतौर पर राख की मात्रा बहुत अधिक होती है।

बयान के मुताबिक, इस चुनौती को दूर करने के उद्देश्य से भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल) ने सिनगैस का उत्पादन करने और फिर 99 प्रतिशत शुद्धता के साथ सिनगैस को मेथनॉल में परिवर्तित करने के लिए अधिक राख वाले भारतीय कोयले के लिए उपयुक्त द्रवीकृत शायिका गैसीकरण तकनीक (फ़्ल्यूइडाइज्ड बेड गैसीफिकेशन टेक्निक) विकसित की है।

बीएचईएल ने सिनगैस को मेथनॉल में परिवर्तित करने के लिए उपयुक्त डाउनस्ट्रीम प्रक्रिया के साथ हैदराबाद में सिनगैस पायलट प्लांट में अपने पास उपलब्ध मौजूदा कोयले को समाहित किया है। प्रति दिन 0.25 मीट्रिक टन मेथनॉल उत्पादन क्षमता वाली यह पायलट-स्तरीय परियोजना नीति आयोग द्वारा शुरू की गई है तथा स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान पहल के तहत विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित है।

क्रेडिट : पेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

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