न्यायालय ने बकरीद पर केरल सरकार की ‘छूट की अनुमति को पूरी तरह अनुचित’ करार दिया

नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 की उच्च संक्रमण दर वाले क्षेत्रों में बकरीद के मौके पर केरल सरकार द्वारा पाबंदी में दी गई छूट को मंगलवार को ‘पूरी तरह से अनुचित’ करार दिया और कहा कि व्यापारियों के दबाव के आगे झुकना ‘दयनीय स्थिति’ को दिखाता है।

शीर्ष अदालत ने व्यापारियों के दबाव में बकरीद से पहले ढील देने के लिए केरल सरकार को फटकार लगाई और कहा कि यह ‘‘माफी योग्य’’ नहीं है। साथ ही, राज्य सरकार को आगाह किया है कि अगर इस छूट से संक्रमण का प्रसार होता है तो वह कार्रवाई करेगी।

न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा कि केरल सरकार ने बकरीद के अवसर पर पाबंदियों में इस तरह की छूट देकर देश के नागरिकों के लिए राष्ट्रव्यापी महामारी के जोखिम को बढ़ा दिया है। न्यायालय ने केरल को चेताया कि अगर पाबंदी में ढील से संक्रमण के मामले बढ़े और कोई व्यक्ति शिकायत लेकर आया तो वह कड़ी कार्रवाई करेगा।

पीठ ने कहा, ‘‘(व्यापारियों के) दबाव समूहों के आगे झुकते हुए पाबंदियों में ढील से देश के नागरिकों के लिए संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। पीठ ने कहा, ‘‘हम केरल सरकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित जीवन के अधिकार पर ध्यान देने का निर्देश देते हैं।’’

पीठ बकरीद के त्योहार के मद्देनजर केरल सरकार द्वारा पाबंदियों में ढील देने के मुद्दे को लेकर दाखिल एक आवेदन पर सुनवाई कर रही थी।

न्यायालय ने महामारी के बीच कांवड़ यात्रा की इजाजत देने के संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले संबंधी मीडिया में आई खबरों पर पिछले सप्ताह स्वत: संज्ञान लिया था। कांवड़ यात्रा पर न्यायालय का कड़ा रुख देखते हुये उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में कांवड़ यात्रा रद्द करने का फैसला किया था।

इसी परिप्रेक्ष्य में केरल में बकरीद के अवसर पर छूट देने के राज्य सरकार के निर्णय की ओर न्यायालय का ध्यान आकर्षित करते हुये एक आवेदन दायर किया गया था।

शीर्ष अदालत ने केरल सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे में एक पैरा का संदर्भ दिया और कहा कि इससे जाहिर होता है कि राज्य व्यापारियों के आगे झुक गया जिन्होंने निवेदन किया था कि बकरीद के लिए उन्होंने सामान मंगवा लिए थे। पीठ ने कहा, ‘‘सबसे दुखद बात यह है कि श्रेणी डी में जहां संक्रमण दर सबसे अधिक है, वहां पूरे दिन की छूट प्रदान की गयी है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘यह हलफनामा दयनीय स्थिति को दिखाता है क्योंकि सही मायने में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वास्थ्य के अधिकार का पालन नहीं किया गया।’’ शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम बताना चाहते हैं कि अगर इससे (ढील से) कोविड-19 की कोई अप्रिय घटना होती है, अगर कोई व्यक्ति इस संबंध में अदालत का रुख करता है तो अदालत कदम उठाएगी।’’

पीठ ने सोमवार को केरल सरकार से बकरीद के मद्देनजर राज्य में कोविड-19 के प्रतिबंधों में तीन दिन की ढील के खिलाफ आवेदन पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा था। शीर्ष अदालत में दाखिल अपने हलफनामे में राज्य ने कहा है कि प्रतिबंधों और इसके परिणामस्वरूप आर्थिक तंगहाली के कारण लोगों की हालत और खराब हुई है।

हलफनामे में कहा गया, ‘‘व्यापारियों को उम्मीद थी कि बकरीद पर बिक्री से उनकी परेशानी कुछ हद तक कम हो जाएगी। उन्होंने इस उद्देश्य के लिए बहुत पहले ही सामान का स्टॉक कर लिया। व्यापारियों के संगठन ने एलएसजीआई (स्थानीय स्व-सरकारी संस्थानों) में लागू किए गए कड़े प्रतिबंधों के खिलाफ प्रदर्शन करना शुरू कर दिया और घोषणा की कि वे पूरे राज्य में नियमों की अवहेलना करते हुए दुकानें खोलेंगे।’’

हलफनामे में कहा गया कि विपक्षी राजनीतिक दलों ने भी व्यापारियों के मुद्दे को सार्वजनिक रूप से उठाया और व्यापारियों को कुछ राहत देने और राज्य में कुछ आर्थिक गतिविधियों की अनुमति देने के लिए प्रतिबंधों में और ढील देने की मांग की।

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने 17 जुलाई को संवाददाता सम्मेलन में पाबंदियों में छूट की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि 21 जुलाई को बकरीद (ईद-उल-अजहा) के मद्देनजर 18-20 जुलाई को श्रेणी ए, बी और सी क्षेत्रों में सुबह 7 बजे से रात 8 बजे तक कपड़ा, जूते-चप्पल की दुकानें, आभूषण, फैंसी स्टोर, घरेलू उपकरण और इलेक्ट्रॉनिक सामान बेचने वाली दुकानें, सभी प्रकार की मरम्मत की दुकानें और आवश्यक सामान बेचने वाली दुकानों को खोलने की अनुमति दी जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा था कि डी श्रेणी के क्षेत्रों में ये दुकानें 19 जुलाई को ही चल सकती हैं।

क्रेडिट : पेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

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