पेरिस जलवायु समझौते के पांच साल बाद

वैज्ञानिकों और राजनयिकों का कहना है कि मध्य से लेकर सदी के अंत तक का दृष्टिकोण उतना निराशाजनक नहीं है जितना कि ऐतिहासिक 2015 के पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर कर एवं किए गए वायदों का पूरा न होना, क्योंकि बहुत से देशों ने अपने यहां गंदगी को साफ करने का वायदा किया था परंतु तापमान में वृद्धि का अनुमान है कि ये वायदे अब छोटे हो गए हैं। ग्लोबल वार्मिंग का पूर्वानुमान लंबी अवधि में थोड़ा कम दिख रहा है लेकिन अल्पावधि में ऐसा नहीं है।

ज्ञातव्य है कि आज भी कई देशों में कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस के उपयोग से ईंधन की मात्रा में बदलाव नहीं किया जा रहा है क्योंकि अक्षय ऊर्जा सस्ती है। पेरिस जलवायु समझौते के ठीक पांच साल बाद गत दिवस दुनिया के नेता एक जगह इकट्ठा हुए। इस आयोजित शिखर सम्मेलन में प्रमुख देशों के नेताओं ने अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने और पिछली प्रतिबद्धताओं को दोहराया।

करीब सौ देशों एवं कंपनियों, राज्यों और शहरों ने सदी के मध्य तक शुद्ध जीरो कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने का वायदा किया था। परंतु क्या पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हम हासिल कर पाए। जलवायु परिवर्तन पांच सालों में कितना बदल गया है इस पर स्वीडिश पर्यावरणविद ग्रेटा थुनबर्ग ने दुनिया के नेताओं को जलवायु परिवर्तन की गलत दिशा और दूर के काल्पनिक लक्ष्यों को स्थापित करने का आरोप लगाया।

साल 2018-19 तक कार्बन प्रदूषण लगभग विश्व स्तर पर बढ़ गया था परंतु कोविड महामारी के कारण 7 प्रतिशत नीचे आया हालांकि इसके फिर बढ़ने की संभावना है। पवन और सौर ऊर्जा की लागत इतनी है कि अक्षय ऊर्जा जीवाष्म ईंधन की तुलना में सस्ती है।

जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन के उद्घाटन पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतेरेस ने कहा कि पेरिस समझौते के पांच साल बाद भी हम सही दिशा में नहीं जा रहे हैं। मध्य शताब्दी तक कार्बन तटस्थता के लिए वैश्विक गठबंधन के लिए 1990 से 2030 तक ग्रीनहाउस उत्सर्जन में 45 प्रतिशत कटौती करने के लिए कहा। उन्होंने आगे आने वाले नेताओं की सराहना भी की एवं पेरिस समझौते के लक्ष्यों और विकासशील देशों की जरूरतों के लिए निजी विभागों को सार्वजनिक और निजी दोनों वित जुटाने के लिए कहा जाना चाहिए।

%d bloggers like this: