वैज्ञानिकों ने पश्चिमी घाट में ‘पाइपवर्ट’ पौधे की दो नई प्रजातियों का पता लगाया

नयी दिल्ली, पुणे स्थित आघारकर अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने पश्चिमी घाट के महाराष्ट्र और कर्नाटक में पड़ने वाले हिस्से में ‘पाइपवर्ट’ पौधे की दो नई प्रजातियों का पता लगाया है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने रविवार को यह जानकारी दी।

मंत्रालय ने कहा कि महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले में पाई गई पाइपवर्ट पौधे की इस प्रजाति का वैज्ञानिक नाम ‘एरिओकौलन पर्वीसेफलम’ रखा गया है, जबकि कर्नाटक के कुमता में पाई गई प्रजाति का वैज्ञानिक नाम ‘एरिओकौलन करावालेन्स’, तटीय कर्नाटक में स्थित करावली के नाम पर रखा गया है।

पाइपवर्ट एक ऐसा पौधा है जो मानसून के दौरान बहुत कम समय में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है। इस तना लंबा होता है और उसके शीर्ष पर सफेद रंग का गुच्छेदार पुष्प होता है। पश्चिमी घाट पर इस पौधे की कई प्रजातियां मिलती हैं।

भारत में पाइपवर्ट की लगभग 111 प्रजातियां मिलती हैं। इनमें से अधिकांश पश्चिमी घाट के क्षेत्र और पूर्वी हिमालय में पाई जाती हैं और 70 प्रतिशत प्रजातियां देशज हैं। विभाग ने कहा, “इस पौधे की एरिओकौलन सिनेरियम नामक प्रजाति अपने कैंसर-रोधी, दर्द निवारक, सूजन-रोधी और त्वचा का रूखापन दूर करने वाले गुणों के लिए जानी जाती है।”

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने कहा कि पाइपवर्ट की अन्य प्रजातियां यकृत के रोगों के इलाज के लिए और जीवाणु रोधी (एंटी बैक्टीरिया) के रूप में उपयोग में लाई जाती हैं।

विभाग ने कहा, “खोज की गई नई प्रजातियों के चिकित्सकीय गुणों को अभी खोजा जाना बाकी है।”
पश्चिमी घाट की जैव विविधता पर शोध करने के दौरान इस पौधे की नई प्रजातियों का पता चला।

क्रेडिट : पेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया

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