संविधान संशोधन एसईबीसी को आरक्षण देने से राज्यों को वंचित नहीं करता है : अटॉर्नी जनरल

नयी दिल्ली, अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि संविधान का 102 वां संशोधन राज्य की विधायिकाओं को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की पहचान करने के लिये कानून बनाने और इसका लाभ उन्हें देने से वंचित नहीं करता है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ से वेणुगोपाल ने कहा कि उनकी राय में राज्य सरकार की स्वतंत्र शक्तियां हैं और संविधान के अनुच्छेद 342 ए के तहत उन्हें कभी नहीं छुआ गया है।

वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘102 वां संविधान संशोधन का यह अर्थ निकालना कि इससे राज्य अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने से वंचित हो जाएंगे, यह सही नहीं है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 15 (4) और 16 (4) में संशोधन करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है, जिसमें घोषणा की गई है कि पिछड़ा वर्ग की पहचान करने की शक्ति राज्य और केंद्र सरकार दोनों के पास है।’’

उन्होंने पीठ से कहा कि जब तक संविधान के अनुच्छेद 15(4) और अनुच्छेद 16(4) में संशोधन करके राज्यों को पिछड़ा वर्ग की पहचान करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जाता है, तब तब यह अर्थ निकालना सही नहीं होगा कि अनुच्छेद 342 ए के जरिये राज्यों से इस संबंध में उनकी शक्ति छीन ली गई है।

पीठ में न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट भी शामिल हैं।

पीठ मराठा समुदाय को आरक्षण देने वाले महाराष्ट्र सरकार के कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। पीठ इस सवाल पर विचार कर रही है कि क्या 1992 के इंदिरा साहनी मामले में आए फैसले पर बड़ी पीठ को पुनर्विचार करने की जरूरत है।

गौरतलब है कि इंदिरा साहनी मामले में उच्चतम न्यायालय ने कुल आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय कर दी थी।

क्रेडिट : पेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

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